ग्रंथो के मुताबिक वामन अवतार में बलि यज्ञ समय जब भगवान विष्णु का एक चरण आकाश एंव ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल के जल से श्रीविष्णु के चरणों की पूजा की | पावं धुलते समय उस चरण का जल हेमकूट पर्वत पर गिरा, वहां से भगवान शंकर के पास पहुंचकर वह जल गंगा के रूप में उनकी जटा में समा गया और वहां से बाहर बहकर आने लगा |
पूर्वजों को तारने के लिए, सातवीं प्रकृति गंगा बहुत काल तक भगवान शंकर की जटा में ही भ्रमण करती रहीं | इसके बाद सूर्यवंशी राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने अपने पूर्वज राजा सगर की दूसरी पत्नी सुमति के साठ हज़ार पुत्रों का विष्णु के अंशावतार कपिल मुनि के श्राप से उद्धार करने के लिए शंकर की घोर तपस्या की | तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने गंगा को पृथ्वी पर उतारा |
'ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता | हरते दश पापानि तस्माद् दसहरा स्मृता | |
भारतीय शास्त्रों के अनुसार अर्थात् - ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि बुधवार, हस्त नक्षत्र में दस प्रकार के पापों का नाश करने वाली गंगा मां का पृथ्वी पर आगमन हुआ | उस समय गंगा तीन धाराओं में बटकर पृथ्वी पर प्रकट होकर तीनों लोकों से होकर जाती है और संसार में त्रिसोता के नाम से विख्यात हुईं |
जानें कब गंगा लौट जाएगी स्वर्ग
पूर्वजों और ग्रंथो के मुताबिक शिव, ब्रह्मा और विष्णु भगवान के संयोग और मदद से पवित्र होकर त्रिभुवन को पावन-पवित्र करती है, समस्त पापों-दुखों और शोक से मुक्त करती हुई गंगा मां वर्तमान समय में अट्ठाईसवे चतुयुर्गीय में कलयुग के प्रथम चरण की शुरुवात होते ही कुछ सहस्त्र वर्षों बाद जब मां गंगा पृथ्वी के पाप का बोझ उठाना कठिन हो जायेगा उसके बाद गंगा मां पृथ्वी लोक त्यागकर अपने देवलोक वापस लौट जाएगी |
गंगा स्नान का महामंत्र
गंगा दशहरा के महापर्व पर भक्तों को स्नान करते समय माँ गंगा का इस मंत्र के द्वारा ध्यान करना चाहिए —
'विष्णु पादार्घ्य सम्भूते गंगे त्रिपथगामिनी! धर्मद्रवीति विख्याते पापं मे हर जाह्नवी।'
गंगा में डुबकी लगाने का मंत्र
गंगा में डुबकी लगाते समय श्रीहरि द्वारा बताए गए इस सर्व पापहारी मंत्र को जपने से व्यक्ति को तत्क्षण लाभ मिलता है —
'ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः।'
आपके पापों से मुक्ति दिलाता है गंगा स्नान
गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी दस प्रकार के दोषों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, ब्रह्महत्या, छल, कपट, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। इतना ही नहीं अवैध संबंध, अकारण जीवों को कष्ट पहुंचाने, असत्य बोलने व धोखा देने से जो पाप लगता है, वह पाप भी गंगा 'दसहरा' के दिन गंगा स्नान से धुल जाता है।